राग बिलावल
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धनि गोबिंद जो गोकुल आए ।
धनि-धनि नंद , धन्य निसि-बासर, धनि जसुमति जिन श्रीधर जाए ॥
धनि-धनि बाल-केलि जमुना -तट, धनि बन सुरभी-बृंद चराए ।
धनि यह समौ, धन्य ब्रज-बासी, धनि-धनि बेनु मधुर धुनि गाए ॥
धनि-धनि अनख, उरहनौ धनि-धनि, धनिमाखन, धनि मोहन खाए ।
धन्य सूर ऊखल तरु गोबिंद हमहि हेतु धनि भुजा बँधाए ॥
भावार्थ / अर्थ :– (कुबेर-पुत्र स्तुति करते हैं-) ‘गोविंद धन्य हैं, जो गोकुलमें प्रकट हुए । श्रीनन्दजी परम धन्य हैं, (श्यामकी लीलाके) ये दिन और रात्रियाँ धन्य हैं तथा माता यशोदा धन्य हैं जिन्होंने मोहनको जन्म दिया । बाल-क्रीड़ा जहाँ होती है, वह यमुना-तट धन्य-धन्य है और यह वृन्दावन धन्य है जहाँ गायोंका झुण्ड चराते हैं । यह समय धन्य है, व्रजवासी धन्य हैं; जिससे मधुर ध्वनिमें गान करते हैं, वह वंशी अत्यन्त धन्य है, परमधन्य है । गोपियों का क्रोध करना, उलाहना देना भी धन्य-धन्य है, मक्खन धन्य है और मोहनका उसे खाना भी धन्य है । सूरदासजी कहते हैं–यह ऊखल धन्य है, यमलार्जुन वृक्ष धन्य हैं और वे गोविंद धन्यातिधन्य हैं, जिन्होंने हमारे लिये अपने हाथ बँधवाये तथा उनके बाँधे जानेवाले) हाथ भी धन्य हैं ।