राग कल्यान
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जब सब गाइ भईं इक ठाईं ।
ग्वालनि घर कौं घेरि चलाई ॥
मारग मैं तब उपजी आगि ।
दसहूँ दिसा जरन सब लागि ॥
ग्वाल डरपि हरि पैं कह्यौ आइ ।
सूर राखि अब त्रिभुवन-राइ ॥
जब गायें एक स्थानपर एकत्र हो गयीं, तब उन्हें घेरकर गोपबालकोंने घरकी ओर हाँक दिया । उसी समय मार्गमें दावानल प्रकट हो गया, दसों दिशाओंमें सब कुछ जलने लगा ।गोपबालक भयभीत होकर श्यामके समीप आये । सूरदासजी कहते हैं, सब बोले- त्रिभुवनके स्वामी! अब रक्षा करो ।’