राग धनाश्री
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गैयनि घेरि सखा सब ल्याए ।
देख्यौ कान्ह जात बृंदावन, यातैं मन अति हरष बढ़ाए ॥
आपुस में सब करत कुलाहल, धौरी, धूमरि धेनु बुलाए ।
सुरभी हाँकि देत सब जहँ-तहँ, टेरि-टेरि हेरी सुर गाए ॥
पहुँचे आइ बिपिन घन बृंदा, देखत द्रुम दुख सबनि गँवाए ।
सूर स्याम गए अघा मारि जब, ता दिन तैं इहिं बन अब आए ॥
सब सखा गायोंको एकत्र करके हाँक लाये; उन्हामोने देखा कि कन्हाई वृन्दावन जा रहा है, इससे उनके मनमें अत्यन्त हर्ष हुआ । धौरी, धूमरी गायोंको पुकार-पुकारकर सब परस्पर कोलाहल कर रहे हैं । सब गायोंको इधर-उधर हाँक देते हैं और उच्च स्वरसे ‘हेरी’ स्वरमें (पदमें ‘हेरी’ शब्द लगाकर) गा रहे हैं । सब-के सब सघन वृन्दावनमें आ पहुँचे, वहाँके वृक्षोंको देककर सभीके कष्ट (सारी थकावट) दूर हो गये । सूरदासजी कहते हैं–श्यामसुन्दर जिस दिन अघासुरको मारकर गये थे, उस दिनके बाद आज इस वनमें आये हैं।