203. राग सूहो बिलावल – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग सूहो बिलावल

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जननि जगावति , उठौ कन्हाई !

प्रगट्यौ तरनि, किरनि महि छाई ॥

आवहु चंद्र-बदन दिखराई । बार-बार जननी बलि जाई ॥

सखा द्वार सब तुमहिं बुलावत । तुम कारन हम धाए आवत ॥

सूर स्याम उठि दरसन दीन्हौ । माता देखि मुदित मन कीन्हौ ॥

माता जगा रही है – ‘कन्हाई ! उठो । सूर्य उग गया, उसकी किरणें पृथ्वीपर फैल गयीं । आओ, अपना चन्द्रमुख दिखलाओ, मैया बार-बार बलिहारी जाती है । सब सखा द्वारपर खड़े तुमको बुला रहे हैं कि ‘मोहन! तुम्हारे लिये ही हम दौड़े आते हैं।’ सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दरने (यह सुनकर) उठकर दर्शन दिया, उन्हें देखकर माताका मन आनन्दित हो गया ।