81. राग केदारौ – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग केदारौ

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मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं ।

जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं ॥

सुरभी कौ पय पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं ।

ह्वै हौं पूत नंद बाबा को , तेरौ सुत न कहैहौं ॥

आगैं आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं ।

हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुलहिया दैहौं ॥

तेरी सौ, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं ॥

सूरदास ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं ॥

भावार्थ / अर्थ :– (श्यामसुन्दर कह रहे हैं) ‘मैया! मैं तो यह चंद्रमा-खिलौना लूँगा (यदि तू इसे नहीं देगी तो ) अभी पृथ्वीपर लोट जाऊँगा, तेरी गोदमें नहीं आऊँगा । न तो गैयाका दूध पीऊँगा, न सिरमें चुटिया गुँथवाऊँगा । मैं अपने नन्दबाबाका पुत्र बनूँगा, तेरा बेटा नहीं कहलाऊँगा ।’ तब यशोदा हँसती हुई समझाती हैं और कहती हैं- ‘आगे आओ ! मेरी बात सुनो, यह बात तुम्हारे दाऊ भैयाको मैं नहीं बताऊँगी । तुम्हें मैं नयी पत्नी दूँगी ।’ (यह सुनकर श्याम कहने लगे-) ‘ तू मेरी मैया है, तेरी शपथ- सुन ! मैं इसी समय ब्याह करने जाऊँगा।’ सूरदासजी कहते हैं–प्रभो! मैं आपका कुटिल बाराती (बारातमें व्यंग करनेवाला) बनूँगा और (आपके विवाहमें) मंगल के सुन्दर गीत गाऊँगा ।