तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
शैलेन्द्र
तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
सुबह औ’ शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों की, बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
तू आ क़दम मिला के चल, चलेंगे एक साथ हम,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
Sir,
sach me ye kavita bahut inspirational hai, aur apka collection bhi bahut hi accha hai.
Yes, it is very optimistic. Gives the reason to live just because you are a living being. Thanks for liking my collection. 🙂
kavita urja dene wali hai