छाप-तिलक तज दीन्हीं रे तोसे नैना मिला के

छाप-तिलक तज दीन्हीं रे तोसे नैना मिला के
अमीर खुसरो

छाप-तिलक तज दीन्हीं रे तोसे नैना मिला के ।

प्रेम बटी का मदवा पिला के,

मतबारी कर दीन्हीं रे मोंसे नैना मिला के ।

खुसरो निज़ाम पै बलि-बलि जइए

मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैना मिला के ।

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  1. यहां छाप और तिलक का प्रयोग व्यंजनात्मक तौर पर किया गया है। यहां छाप और तिलक का अर्थ सन्यासियों से है जो मोह-माया त्याग कर सांसारिक बातों से मुंह मोड़ लेते हैं। परंतु खुसरो का यहां कहना यह है कि प्रेम नाम का रस पीने के बाद इस त्याग से ही मोह भंग हो जाता है और सन्यासी भी सन्यास की चीजों को छोड़कर प्रेम रंग में रंग जाते हैं।

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