62. राग कान्हरौ – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग कान्हरौ

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गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भागिनि हो नँदरानी ।

आनँद की निधि मुख जु लाल कौ, छबि नहिं जाति बखानी ॥

गुन अपार बिस्तार परत नहिं कहि निगमागम-बानी ।

सूरदास प्रभु कौं लिए जसुमति,चितै-चितै मुसुकानी ॥

सुना है कि महाभाग्यवती श्रीनन्दरानी कन्हैयाको गोदमें लेकर खेलाती थीं । लालका मुख तो आनंदकी निधि (कोष) है, उसकी शोभाका वर्णन नहीं किया जा सकता । उनके गुण अपार हैं, वेद और शास्त्रोंके द्वारा भी उनके विस्तारकावर्णन नहीं हो सकता है । सूरदासजी कहते हैं कि मेरे ऐसे स्वामीको गोदमें लेकर यशोदाजी उन्हें देख-देखकर मुसकराती (हर्षित होती) थी ।