6. राग रामकली – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग रामकली

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हौं इक नई बात सुनि आई ।
महरि जसौदा ढौटा जायौ, घर घर होति बधाई ॥
द्वारैं भीर गोप-गोपिनि की, महिमा बरनि न जाई ।
अति आनन्द होत गोकुल मैं, रतन भूमि सब छाई ॥
नाचत बृद्ध, तरुन अरु बालक, गोरस-कीच मचाई ।
सूरदास स्वामी सुख-सागर, सुंदर स्याम कन्हाई ॥

भावार्थ / अर्थ :– (कोई गोपिका कहती है-) मैं एक नवीन समाचार सुन आयी हूँ–‘व्रजरानी श्रीयशोदाजीके
पुत्र उत्पन्न हुआ है, घर-घरमें बधाई (मंगलगान) हो रही है । (व्रजराज के) द्वारपर
गोप-गोपियों की भीड़ लगी है । आज के उनके महत्त्व का वर्णन नहीं हो सकता । गोकुल
में अत्यन्त आनंद मनाया जा रहा है (वहाँ की ) सारी पृथ्वी रत्नों से ढक गयी है ।
सभी वृद्ध, तरुण और बालक नाच रहे हैं । (उन्होंने) गोरस (दूध, दही, माखन) का
कीचड़ मचा रखा है ।’सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी श्यामसुन्दर कन्हाई सुख के
समुद्र हैं । (इनके गोकुल आने से वहाँ आनन्द-महोत्सव तो होगा ही ।)

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हौं सखि, नई चाह इक पाई ।
ऐसे दिननि नंद कैं सुनियत, उपज्यौ पूत कन्हाई ॥
बाजत पनव-निसान पंचबिध, रुंज-मुरज सहनाई ।
महर-महरि ब्रज-हाट लुटावत, आनँद उर न समाई ॥
चलौं सखी, हमहूँ मिलि जैऐ, नैंकु करौ अतुराई ।
कोउ भूषन पहिर््यौ, कोउ पहिरति, कोउ वैसहिं उठि धाई ॥
कंचन-थार दूब-दधि-रोचन, गावति चारु बधाई ।
भाँति-भाति बनि चलीं जुवति जन, उपमा बरनि न जाई ॥
अमर बिमान चढ़े सुख देखत, जै-धुनि-सब्द सुनाई ।
सूरदास प्रभु भक्त-हेत-हित, दुष्टनि के दुखदाई ॥

भावार्थ / अर्थ :– (कोई गोपी कहती है-) ‘सखी! मैंने एक नवीन बात सुनी है कि इन्हीं दिनों
ब्रजराज श्रीनन्दजी के पुत्र उत्पन्न हुआ है जिसे सब लोग कन्हैया कहते हैं । (वहाँ)
नगाड़े, ढोलक, श्रृंगे, मृदंग, सहनाई आदि पाँचों प्रकार के बाजे’ बज रहे हैं ।
ब्रजराज व्रजरानी (आज) व्रजका पूरा बाजार (उपहारमें) लुटाये दे रहे हैं, उनके हृदय
में आनन्द समाता नहीं हैं ! इसलिए सखी ! तनिक शीघ्रता करो ! हम सब भी एकत्र होकर
वहाँ चलें ।’ किसी ने आभूषण पहिन लिया, कोई पहिनने लगी और कोई जैसे थी वैसे ही उठी
और दौड़ पड़ी । स्वर्ण के थाल में दूर्वा तथा गोरोचन लिये बधाई के सुन्दर गीत गाती
हुई (व्रजकी) युवतियाँ नाना प्रकार के श्रृंगार करके चल पड़ी , उनकी उपमा का तो
उपमा नहीं किया जा सकता । देवता विमानों पर चढ़े इस आनन्द को देख रहे हैं, उनके जय
-जयकार करने का शब्द सुनायी पड़ रहा है । सूरदासजी कहते हैं कि मेरे प्रभु भक्तों
के लिये हितकारी तथा दुष्टों के लिये दुःखदायक (उनका विनाश करनेवाले) हैं ।