55. राग कान्हरौ – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग कान्हरौ

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हरि हरि हँसत मेरौ माधैया ।

देहरि चढ़त परत गिर-गिर, कर पल्लव गहति जु मैया ॥

भक्ति-हेत जसुदा के आगैं, धरनी चरन धरैया ।

जिनि चरनि छलियौ बलि राजा, नख गंगा जु बहैया ॥

जिहिं सरूप मोहे ब्रह्मादिक, रबि-ससि कोटि उगैया ।

सूरदास तिन प्रभु चरननि की, बलि-बलि मैं बलि जैया ॥

भावार्थ / अर्थ :– हरि-हरि! (कितने आनन्दकी बात है) मेरा माधव हँस रहा है । देहलीपर चढ़ते समय वह बार-बार गिर पड़ता है, मैया उसके करपल्लवको पकड़कर सहारा देती है । भक्तिके कारण(प्रेम-परवश) माता यशोदाके आगे वह पृथ्वीपर चरण रख रहा है (अवतरित हुआ है) । जिन चरणों से (जगतको तीन पदमें नापकर) बलि राजाको उसने छला और अपने चरणनख से गंगाजीको (उत्पन्न करके) प्रवाहित किया, जिसके स्वरूपसे ब्रह्मादि देवता मोहित (आशचर्यचकित) हो रहे, जिस (चरणके नखसे) करोड़ों सूर्य-चन्द्र उगते (प्रकाशित होते) हैं, सूरदासजी कहते हैं–अपने स्वामीके उन्हीं चरणों पर बार-बार मैं बलिहारी जाता हूँ ।

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झुनक स्याम की पैजनियाँ ।

जसुमति-सुत कौ चलन सिखावति, अँगुरी गहि-गहि दोउ जनियाँ ॥

स्याम बरन पर पीत झँगुलिया, सीस कुलहिया चौतनियाँ ।

जाकौ ब्रह्मा पार न पावत, ताहि खिलावति ग्वालिनियाँ ॥

दूरि न जाहु निकट ही खेलौ, मैं बलिहारी रेंगनियाँ ।

सूरदास जसुमति बलिहारी, सुतहिं खिलावति लै कनियाँ ॥

भावार्थ / अर्थ :– श्यामसुन्दर की पैंजनी रुनझुन कर रही है । (माता रोहिणी और) मैया यशोदा–दोनों जनी अँगुली पकड़कर अपने पुत्रको चलना सिखला रही है । (कन्हाईके) श्याम रंगके शरीरपर पीला कुर्ता है और मस्तक पर चौकोर टोपी है । जिसका पार (सृष्टिकर्ता) ब्रह्माजी भी नहीं पाते, (आज) उसी (मोहन) को गोपियाँ खेला रही हैं । (मैया कहती है)-‘लाल! मैं तुम्हारे रिंगण (घुटनों सरकने) पर बलिहारी हूँ, दूर मत जाओ ! (मेरे) पास ही खेलो!’ सूरदासजी कहते हैं कि यशोदाजी अपने पुत्रपर न्योछावर हो रही हैं, वे उन्हें गोदमें लेकर खेला रही हैं ।

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चलत लाल पैजनि के चाइ ।

पुनि-पुनि होत नयौ-नयौ आनँद, पुनि-पुनि निरखत पाइ ॥

छोटौ बदन छोटियै झिंगुली, कटि किंकिनी बनाइ ।

राजत जंत्र-हार, केहरि-नख पहुँची रतन-जराइ ॥

भाल तिलक पख स्याम चखौड़ा जननी लेति बलाइ ।

तनक लाल नवनीत लिए कर सूरज बलि-बलि जाइ ॥

भावार्थ / अर्थ :– लाल (श्यामसुन्दर) पैजनीके चावसे (नूपुर-ध्वनि से आनन्दित होकर) चलते हैं । बार-बार उन्हें नया-नया आनन्द (उल्लास) होता है, बार-बार वे अपने चरणोंको देखते हैं । छोटा-सा मुख है, छोटा-सा कुर्ता पहिने हैं और कटिमें करधनी सजी है । (गलेमें) यन्त्रयुक्त हार तथा बघनख शोभित है । (भुजाओंमें) रत्नजटित पहुँची (अंगद) हैं, ललाटपर तिलक लगा है तथा काला डिठौना है, माता उनकी बलैयाँ ले रही हैं, लाल (श्याम) अपने हाथपर थोड़ा-सा माखन लिये हैं, (उनकी इस छटा पर) सूरदास बार-बार बलिहारी जाता है ।