38. राग बिलावल – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग बिलावल

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 बाल बिनोद खरो जिय भावत ।

मुख प्रतिबिंब पकरिबे कारन हुलसि घुटुरुवनि धावत ॥

अखिल ब्रह्मंड-खंड की महिमा, सिसुता माहिं दुरावत ।

सब्द जोरि बोल्यौ चाहत हैं, प्रगट बचन नहिं आवत ॥

कमल-नैन माखन माँगत हैं करि करि सैन बतावत ।

सूरदास स्वामी सुख-सागर, जसुमति-प्रीति बढ़ावत ॥

(श्यामसुन्दरका) बालविनोद हृदयको अत्यन्त प्रिय लगता है । अपने मुखका प्रतिबिम्ब पकड़ने के लिये वे बड़े उल्लास से घुटनोंके बल दौड़ते हैं । इस प्रकार निखिल ब्रह्माण्डनायक होनेका माहात्म्य अपनी शिशुतामें वे छिपाये हुए हैं । शब्दों को एकत्र करके कुछ कहना चाहते हैं, किंतु स्पष्ट बोलना आता नहीं है । वे कमललोचन मक्खन माँगना चाहते हैं, इससे बार-बार संकेत करके समझा रहे हैं । सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी सुखके समुद्र हैं, वे माता यशोदाके वात्सल्य-प्रेमको बढ़ा रहे हैं ।

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