राग धनाश्री
भावार्थ: पुत्रका मुख देखकर यशोदाजी उत्फुल्ल हो उठीं । दूधकी दँतुलियाँ देखकर वे अत्यन्त हर्षित हुई, प्रेममें मग्न होकर अपने शरीरकी सुधि भूल गयीं । बाहर से उन्होंने व्रजराज श्रीनन्दजीको बुलाया कि ‘यह सुखदायक दृश्य तो देखो ! (मोहनकी) तनिक-तनिक -सी निकली दूधकी दँतुलियोंको देखकर अपने नेत्रों को सफल करो । आनन्दपूर्वक श्रीव्रज राज तब वहाँ आये । मोहनका मुख देखकर उनके दोनों नेत्र तृप्त हो गये । सूरदासजी कहते हैं कि श्यामके किलकारी लेते समय उनके दाँत इस प्रकार दीख पड़े, मानो कमलपुष्प के ऊपर बिजली जड़ी हो ।