212. राग कान्हरौ – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग कान्हरौ

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पौढ़े स्याम जननि गुन गावत ।

आजु गयौ मेरौ गाइ चरावन, कहि-कहि मन हुलसावत ॥

कौन पुन्य-तप तैं मैं पायौ ऐसौ सुंदर बाल ।

हरषि-हरषि कै देति सुरनि कौं सूर सुमन की माल ॥

श्यामसुन्दर सो गये हैं, माता उनका गुणगान करती हैं -‘आज मेरा लाल गाय चराने गया है’ बार-बार यह कहकर मन-ही-मन उल्लसित होती है । पता नहीं किस पुण्य तथा तपसे ऐसा सुन्दर बालक मैंने पाया ।’ सूरदासजी कहते हैं, बार-बार हर्षित होकर वे देवताओंको फूलों की माला चढ़ा रही हैं ।