राग कान्हरौ
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पलना स्याम झुलावती जननी।
अति अनुराग पुरस्सर गावति, प्रफुलित मगन होति नँद-घरनी ॥
उमँगि-उमँगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी ।
सूरदास प्रभु मुदित जसोदा, पुरन भई पुरातन करनी ॥
माता श्यामसुन्दरको पलनेमें झुला रही हैं । अत्यन्त प्रेमवश वे नन्दपत्नी गाती
जाती हैं, वे आनन्द से प्रफुल्लित हैं, मन-ही-मन प्रसन्न हो रही हैं । बार-बार
उल्लसित होकर प्रभु भुजाएँ फैलाते हैं और श्रीयशोदाजी हर्षित होकर उन्हें गोदमें
उठा लेती हैं । सूरदासजी कहते हैं–श्रीयशोदाजी आनन्दित हो रही हैं । उनके पूर्वकृत
पुण्यफल पूर्णतः सफल हो गये हैं । सूरदासजी कहते हैं–श्रीयशोदाजी आनन्दित हो रही हैं । उनके पूर्वकृत पुण्यफल पूर्णतः सफल हो गये हैं ।
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हरि किलकत जसुदा की कनियाँ ।
निरखि-निरखि मुख कहति लाल सौं मो निधनी के धनियाँ ॥
अति कोमल तन चितै स्याम कौ बार-बार पछितात ।
कैसैं बच्यौ, जाउँ बलि तेरी, तृनावर्त कैं घात ॥
ना जानौं धौं कौन पुन्य तैं, को करि लेत सहाइ ।
वैसी काम पूतना कीन्हौं, इहिं ऐसौ कियौ आइ ॥
माता दुखित जानि हरि बिहँसे, नान्हीं दँतुलि दिखाइ ।
सूरदास प्रभु माता चित तैं दुख डार््यौ बिसराइ ॥
भावार्थ / अर्थ :– श्रीहरि माता यशोदाकी गोदमें किलकारी ले रहे हैं । माता बार-बार मुख देखकर अपने लालसे कहती है -‘लाल ! तू मुझ कंगालिनीका धन है।’ वे श्याम सुन्दरका अत्यन्त कोमल शरीर देखकर बार-बार पश्चाताप करती है -‘लाल! मैं तुझपर बलिहारी हूँ, पता नहीं तू तृणावर्तके आघातसे कैसे बच गया । किस (पूर्वजन्मके) पुण्य से कौन (देवता) सहायता कर देता है, यह मैं जानती नहीं; जैसा (क्रूर) कर्म पूतनाने किया था, वैसा ही इस (तृणावर्त) ने आकर किया।’ माताको दुःखित समझकर श्याम छोटी दँतुलियाँ दिखाकर हँस पड़े । सूरदासजी कहते हैं कि प्रभु ने माताका चित्त अपने में लगाकर उनका दुःख विस्मृत करा दिया ।
[42]
सुत-मुख देखि जसोदा फूली ।
हरषित देखि दूध की दँतियाँ, प्रेममगन तन की सुधि भूली ॥
बाहिर तैं तब नंद बुलाए, देखौ धौं सुंदर सुखदाई ।
तनक-तनक-सी दूध-दँतुलिया, देखौ, नैन सफल करौ आई ॥
आनँद सहित महर तब आए, मुख चितवत दोउ नैन अघाई ।
सूर स्याम किलकत द्विज देख्यौ, मनौ कमल पर बिज्जु जमाई ॥
और बार-बार बालकका मुख देखती हैं । श्याम ओठ फड़काकर तनिक हँस पड़े, इस शोभाकी
उपमा भला कौन जान सकता है । माता झुलाती है और ‘प्यारे लाल !’ कह-कहकर गाती है ।
माता झुलाती है और ‘प्यारे लाल!’ कह-कहकर गाती है । श्यामसुन्दरकी शिशु अवस्थाकी
लीलाएँ अपार है । व्रजरानी उनका श्रीमुख देखकर हृदयमें उल्लसित हो रही हैं । सूरदास
जी कहते हैं-ये मेरे स्वामी (जो शिशु बने हैं) साक्षात शार्ङ्गपाणि नारायण हैं ।