137. राग नट – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग नट

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देखी ग्वालि जमुना जात ।

आपु ता घर गए पूछत, कौन है, कहि बात ॥

जाइ देखे भवन भीतर , ग्वाल-बालक दोइ ।

भीर देखत अति डराने, दुहुनि दीन्हौं रोइ ॥

ग्वाल के काँधैं चड़े तब, लिए छींके उतारि ।

दह्यौ-माखन खात सब मिलि,दूध दीन्हौं डारि ॥

बच्छ ल सब छोरि दीन्हें, गए बन समुहाइ ।

छिरकि लरिकनि महीं सौं भरि, ग्वाल दए चलाइ ॥

देखि आवत सखी घर कौं, सखनि कह्यौ जु दौरि ।

आनि देखे स्याम घर मैं, भई ठाढ़ी पौरि ॥

प्रेम अंतर, रिस भरे मुख, जुवति बूझति बात ।

चितै मुख तन-सुधि बिसारी, कियौ उर नख-घात ॥

अतिहिं रस-बस भई ग्वालिनि, गेह-देह बिसारि ।

सूर-प्रभु-भुज गहे ल्याई, महरि पैं अनुसारि ॥

भावार्थ / अर्थ :– (श्यामसुन्दरने) देखा कि गोपी यमुनाजी जा रही है तो स्वयं यह बात पूछते हुए कि ‘यहाँ कौन है ?’ उसके घरमें चले गये । घरके भीतर जाकर देखा कि वह वहाँ दो गोपशिशु हैं । (बालकोंकी) भीड़ देखकर वे दोनों शिशु बहुत डर गये और रो पड़े । तब, श्यामसुन्दर एक गोपसखाके कंधेपर चढ़ गये और उन्होंने छींके उतार लिये । सब मिलकर दही और मक्खन खाने लगे तथा दूध गिरा दिया । उसके सभी बछड़ोंको खोल दिया, वे सब एकत्र होकर वनमें भाग गये । दोनों शिशुओंको मट्ठा छिड़ककर उससे सराबोर करके गोपसखाओंको आगे बढ़ा दिया । उस सखी (गोपी) को आते देखकर सखाओं ने भागते हुए उससे (सारा समाचार) कह दिया । गोपीने आकर जो अपने घरमें श्यामसुन्दरको देखा तो दरवाजेपर (मार्ग रोकर) खड़ी हो गयी । (उसके) हृदयमें तो प्रेम था, किंतु मुखपर क्रोध लाकर उस गोपीने सारी बात पूछी । किंतु मोहनके मुखको देखकर वह अपने शरीरकी सुधि ही भूल गयी, तभी श्यामसुन्दरने (चिढ़ाने के लिये) उसके वक्षःस्थलपर नखसे आघात किया । (अब तो) गोपी रसके अत्यन्त वश हो गयी, अपने शरीर और (सूने)घरको भी वह भूल गयी । सूरदासजी कहते हैं कि वह मेरे स्वामीका हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ व्रजरानीके पास ले आयी ॥