106. राग केदारौ – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग केदारौ

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कीजै पान लला रे यह लै आई दूध जसोदा मैया ।

कनक-कटोरा भरि लीजै, यह पय पीजै, अति सुखद कन्हैया ॥

आछैं औट्यौ मेलि मिठाई, रुचि करि अँचवत क्यौं न नन्हैया ।

बहु जतननि ब्रजराज लड़ैते, तुम कारन राख्यौ बल भैया ॥

फूँकि-फूँकि जननी पय प्यावति , सुख पावति जो उर न समेया ।

सूरज स्याम-राम पय पीवत, दोऊ जननी लेतिं बलैया ॥

भावार्थ / अर्थ :– मैया यशोदा मैया यशोदा दूध ले आयीं (और बोलीं) ‘लाल! यह सोनेका दूधभरा कटोरा लेकर दूध पियो । कन्हाई यह अत्यन्त सुखदायी दूध पी लो । इसमें मीठा डालकर इसे भली प्रकार मैंने औटाया (गरम करके गाढ़ा किया) है, मेरे नन्हें लाल! रुचिपूर्वक इसे क्यों नहीं पीते हो ? व्रजराज के लाड़िले लाल! तुम्हारे साथ दूध पीने के लिए बड़े यत्न से तुम्हारे दाऊ भैयाको मैंने रोक रखा है ।’ माता फूँक- फूँककर (शीतल करके) दूध पिला रही हैं और ऐसा करनेमें इतना आनन्द पा रही हैं, जो हृदयमें समाता नहीं । सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दर और बलरामजी दूध पी रहे हैं । दोनों माताएँ बलैया लेती हैं (जिसमें उन्हें नजर न लग जाय)।

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बल मोहन दोऊ अलसाने ।

कछु कछु खाइ दूध अँचयौ, तब जम्हात जननी जाने ॥

उठहु लाल! कहि मुख पखरायौ, तुम कौं लै पौढ़ाऊँ ।

तुम सोवो मैं तुम्हें सुवाऊँ, कछु मधुरैं सुर गाऊँ ॥

तुरत जाइ पौढ़े दोउ भैया, सोवत आई निंद ।

सूरदास जसुमति सुख पावति पौढ़े बालगोबिन्द ॥

भावार्थ / अर्थ :– बलराम और श्यामसुन्दर दोनों भाई अलसा गये (आलस्यपूर्ण हो गये) हैं, थोड़ा-थोड़ा भोजन करके उन्होंने दूध पी लिया, तततब माताने देखा कि उन्हें जम्हाई आ रही है (अतः इन्हें अब सुला देना चाहिये) । ‘लाल उठो !’ यह कहकर उनका मुख धुलाया; फिर कहा-‘ आओ, तुम्हें (पलंगपर) लिटा दूँ; तुम सोओ, मैं कुछ मधुर स्वरसे गाकर तुम्हे सुलाऊँ ।’ दोनों भाई तुरन्त ही जाकर लेट गये, लेटते ही उन्हें निद्रा आ गयी । सूरदासजी कहते हैं कि बालगोविन्दको सोते देख माता यशोदा आनन्दित हो रही हैं ।