16. राग बागेश्री
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मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली।। बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै।। इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै।। तारा गिण गिण रैण बिहानी , सुख की घड़ी कब आवै। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै।।16।।
शब्दार्थ /अर्थ :- बिरहणी =विरहनी। पोवै =गूंथती है। रैण =रात। बिहानी = बीत गयी।