230. राग गौरी – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग गौरी

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आछौ दूध पियौ मेरे तात ?

तातौ लगत बदन नहिं परसत, फूँक देति है मात ॥

औटि धर््यौ है अबहीं मोहन, तुम्हरैं हेत बनाइ ।

तुम पीवौ, मैं नैननि देखौं, मेरे कुँवर कन्हाइ ॥

दूध अकेली धौरी कौ यह, तनकौं अति हितकारि ।

सूर स्याम पय पीवन लागे, अति तातौ दियौ डारि ॥

भावार्थ / अर्थ :– (मैया कहती है-) ‘मेरे लाल! बड़ा अच्छा दूध है पी लो ।’ गरम लगता है, इससे मुखसे छूते नहीं-माता फूँक देकर शीतल करती है । (वह कहती है-)’मोहन! इसे अभी-अभी तुम्हारे ही लिये बनाकर (भली प्रकार) उबालकर रखा है । मेरे कुँवर कन्हाई! तुम पीओ और मैं अपनी आँखों (तुम्हें दूध पीते ) देखूँ । वह केवल धौरीका दूध है, शरीर के लिये अत्यन्त लाभकारी है ।’ सूरदासजी कहते हैं – श्याम सुन्दर दूध पीने लगे; किंतु वह अत्यन्त लाभकारी है।’ सूरदासजी कहते हैं- श्याम सुन्दर दूध पीने लगे; किंतु वह अत्यन्त गरम था, इससे गिरा दिया ।