राग बिलावल
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दोउ भैया जेंवत माँ आगैं ।
पुनि-पुनि लै दधि खात कन्हाई, और जननि पै माँगैं ॥
अति मीठौ दधि आजु जमायौ, बलदाऊ तुम लेहु ।
देखौं धौं दधि-स्वाद आपु लै, ता पाछैं मोहि देहु ॥
बल-मोहन दोउ जेंवत रुचि सौं, सुख लूटति नँदरानी ।
सूर स्याम अब कहत अघाने, अँचवन माँगत पानी ॥
भावार्थ / अर्थ :– दोनों भाई माताके सामने बैठे भोजन कर रहे हैं । कन्हाई बार-बार दही लेकर खाते हैं तथा मैयासे और माँगते हैं (कहते हैं-) ‘आज बहुत मीठा दही जमा है, दाऊ दादा ! तुम भी लो । पहिले स्वयं लेकर दहीका स्वाद देख लो, फिर पीछे मुझे देना । (इस प्रकार) बलराम और श्याम रुचिपूर्वक भोजन कर रहे हैं, श्रीनन्दरानी यह आनन्द लूट रही हैं । सूरदासजी कहते हैं–श्यामसुन्दर कहने लगे – ‘अब तृप्त हो गये ।’ वे आचमन करने (मुँह धोने) के लिये जल माँग रहे हैं ।