215. राग नट – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग नट

[293]

……….$

अति आनंद भए हरि धाए ।

टेरत ग्वाल-बाल सब आवहु, मैया मोहि पठाए ॥

उत तैं सखा हँसत सब आवत, चलहु कान्ह! बन देखहिं ।

बनमाला तुम कौं पहिरावहिं, धातु-चित्र तनु रेखहिं ॥

गाइ लई सब घेरि घरनि तैं, महर गोप के बालक ।

सूर स्याम चले गाइ चरावन, कंस उरहि के सालक ॥

भावार्थ / अर्थ :– श्यामसुन्दर अत्यन्त आनन्दित होकर दौड़ पड़े और गोप बालकोंको पुकारने लगे -~सब लोग आ जाओ! मैया ने मुझे भेज दिया है ।’ उधर से सारे सखा भी हँसते हुए आ रहे हैं (और कह रहे हैं) ‘कन्हाई ! चलो, हमलोग वन देखें तुमको वनमाला (गूँथकर) पहिनायेंगे और (गेरू, खड़िया, मेनसिल आदि) वन धातुओंकी रेखाओंसे तुम्हारे शरीर पर चित्र बनवायेंगे ।’ घरोंसे व्रजगोपोंके बालकों ने सारी गायों को एकत्र करके हाँक लिया । सूरदासजी कहते हैं कि (इस प्रकार) कंसके हृदयको पीड़ा देनेवाले व्रजराज नन्द के कुमार श्यामसुन्दर गायें चराने चले ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Select Dropdown