राग बिलावल
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धेनु दुहत हरि देखत ग्वालनि ।
आपुन बैठि गए तिन कैं सँग, सिखवहु मोहि कहत गोपालनि ॥
काल्हि तुम्हैं गो दुहन सिखावैं, दुहीं सबै अब गाइ ।
भौर दुहौ जनि नंद-दुहाई, उन सौं कहत सुनाई ॥
बड़ौ भयौ अब दुहत रहौंगौ, अपनी धेनु निबेरि ।
सूरदास प्रभु कहत सौंह दै, मोहिं लीजौ तुम टेरि ॥
भावार्थ / अर्थ :– श्यानसुन्दर गोपोंको गायें दुहते देखते हैं । (एक दिन) स्वयं भी उनके साथ बैठ गये और गोपालोंसे कहने लगे -‘मुझे भी सिखलाओ ।’ (गोपोंने कहा-) ‘इस समय तो सब गायें दुही जा चुकी हैं, कल तुम्हें गाय दुहना सिखलायेंगे।’ तब उनसे सुनाकर कहने लगे – ‘तुम लोगोंको बाबा नन्दकी शपथ है, सबेरे मत दुह लेना । मैं अब बड़ा हो गया, अपनी गायें अलग करके स्वयं दुह लिया करूँगा ।’ सूरदासजी कहते हैं कि मेरे स्वामी शपथ देकर (गोपोंसे) कह रहे हैं -‘तुमलोग मुझे पुकार लेना ।’