129. राग बिलावल – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग बिलावल

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प्रथम करी हरि माखन-चोरी ।

ग्वालिनि मन इच्छा करि पूरन, आपु भजे-खोरी ॥

मन मैं यहै बिचार करत हरि, ब्रज घर-घर सब जाउँ ।

गोकुल जनम लियौ सुख कारन, सब कैं माखन खाउँ ॥

बालरूप जसुमति मोहि जानै, गोपिनि मिलि सुख-भोग ।

सूरदास प्रभु कहत प्रेम सौं, ये मेरे ब्रज-लोग ॥

भावार्थ / अर्थ :– श्यामसुन्दरने पहली बार मक्खनकी चोरी की और इस प्रकार गोपिका के मनकी इच्छा पूरी करके स्वयं व्रजकी गलियों में भाग गये । अब श्याम मनमें यही विचार करने लगे कि ‘मैंने तो व्रजवासियोंको आनन्द देनेके लिये ही गोकुलमें जन्म लिया है; अतः (सबको आनन्द देनेके लिये) व्रजके प्रत्येक घरमें जाऊँगा और सबके यहाँ मक्खन खाऊँगा मैया यशोदा तो मुझे (निरा) बालक समझती हैं, गोपियोंसे मिलकर उनके प्रेम-रसका उपभोग करूँगा ।’ सूरदासजी कहते हैं – मेरे स्वामी प्रेमपूर्वक कह रहे हैं कि ‘ये व्रजके लोग तो मेरे निज जन हैं ।’