20. राग धनाश्री – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग धनाश्री

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 कन्हैया हालरु रे ।

गढ़ि गुढ़ि ल्यायौ बढ़ई, धरनी पर डोलाइ, बलि हालरु रे ॥

इक लख माँगे बढ़ई, दुइ लख नंद जु देहिं बलि हालरु रे ।

रतन जटित बर पालनौ, रेसम लागी डोर, बलि हालरु रे ॥

कबहुँक झूलै पालना, कबहुँ नंद की गोद, बलि हालरु रे ।

झूलै सखी झुलावहीं , सूरदास बलि जाइ, बलि हालरु रे ॥

भावार्थ / अर्थ :– (माता गा रही हैं-)’ कन्हैया, झूलो! बढ़ई बहुत सजाकर पलना गढ़ ले आया और उसे पृथ्वीपर चलाकर दिखा दिया, लाल! मैं तुझपर न्यौछावर हूँ, तू (उस पलनेमें) झूल! बढ़ई एक लाख (मुद्राएँ) माँगता था, व्रजराजने उसे दो लाख दिये । लाल! तुझपर मैं बलि जाऊँ, तू (उस पलनेमें) झूल! पलना रत्नजड़ा है और उसमें रेशमकी डोरी लगी है, लाल! मैं तेरी बलैया लूँ, तू (उसमें) झूल! मेरा लाल कभी पलनेमें झूलता है, कभी व्रजराजकी गोदमें, मैं तुझपर बलि जाऊँ, तू झूल! सखियाँ झूलेको झुला रही हैं, सूरदास इसपर न्योछावर है! बलिहारी नन्दलाल, झूलो ।’

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