राग बिलावल
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बन पहुँचत सुरभी लइँ जाइ ।
जैहौ कहा सखनि कौं टेरत, हलधर संग कन्हाइ ।
जेंवत परखि लियौ नहिं हम कौं, तुम अति करी चँड़ाइ ॥
अब हम जैहैं दूरि चरावन, तुम सँग रहै बलाइ ॥
यह सुनि ग्वाल धाइ तहँ आए, स्यामहिं अंकम लाइ ।
सखा कहत यह नंद-सुवन सौं, तुम सबके सुखदाइ ॥
आजु चलौ बृंदाबन जैऐ, गैयाँ चरैं अघाइ ।
सूरदास-प्रभु सुनि हरषित भए, घर तैं छाँक मँगाइ ॥
वन पहुँचते-पहुँचते गायोंको पकड़ लिया (उनके समीप पहुँचकर उन्हें घेर लिया) फिर बलरामजीके साथ कन्हाई सखाओंको पुकारने लगे–‘तुम लोग कहाँ जाओगे? भोजन करते समय तुमने हमारी प्रतीक्षा नहीं की, बहुत उतावली की, अब हम दूर (गायें) चराने जायँगे, तुम्हारे साथ मेरी बला रहे ।’ यह सुनकर गोपबालक वहाँ दौड़े आये और श्यामसुन्दरको हृदयसे लगा लिया । सखा नन्दकुमार से यह बोले -~ तुम तो सभीको सुख देने वाले हो; चलो आज वृन्दावन चले, वहाँ गायें तृप्त होकर चरें । सूरदासके स्वामी यह सुनकर प्रसन्न हो गये, उन्होंने घरसे छाक (दोपहरका भोजन) मँगवा लिया ।
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चले सब बृंदाबन समुहाइ ।
नंद-सुवन सब ग्वालनि टेरत, ल्यावहु गाइ फिराइ ॥
अति आतुर ह्वै फिरे सखा सब, जहँ-तहँ आए धाइ ।
पूछत ग्वाल बात किहिं कारन, बोले कुँवर कन्हाइ ॥
सुरभी बृंदाबन कौं हाँकौ, औरनि लेहु बुलाइ ।
सूर स्याम यह कही सबनि सौं,आपु चले अतुराइ ॥
सब (बालक) एकत्र होकर वृन्दावन चले । नन्दनन्दन सब गोपबालकोंको पुकार रहे हैं – ‘गायोंको घुमा लाओ ।’ इससे सब सखा अत्यन्त आतुर होकर लौटे और जहाँ-तहाँसे दौड़े आये । गोपबालकयह बात पूछ रहे हैं -‘कुँवर कन्हाई ! किसलिये हम सबको तुमने बुलाया ?’ सूरदासजी कहते हैं–श्यामसुन्दरने सबसे यह कहा कि गायें वृन्दावनके लिये हाँको, दूसरे सब सखाओंको भी बुला लो!’ और स्वयं (भी) शीघ्रतापूर्वक चल पड़े ।