33. पपइया रे! …………………….
पपइया रे पिवकी बाणि न बोल। सुणि पावेली बिरहणी रे थारी रालेली पांख मरोड़।। चांच कटाऊं पपइया रे ऊपर कालोर लूण। पिव मेरा मैं पिव की रे तू पिव कहै स कूण।। थारा सबद सुहावणा रे जो पिव मेला आज। चांच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे तू मेरे सिरताज।। प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे कागा तूं ले जाय। जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे थांरि बिरहण धान न खाय।। मीरा दासी ब्याकुली रे पिव-पिव करत बिहाय। बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी तुम बिनु रह्यौ न जाय।।