30. शरण गही प्रभु तेरी …………………….
सुण लीजो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तेरी। तुम(तो) पतित अनेक उधारे, भव सागर से तारे।। मैं सबका तो नाम न जानूं कोइ कोई नाम उचारे। अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुंचाये निज धामा। ध्रुव जो पांच वर्ष के बालक, तुम दरस दिये घनस्यामा। धना भक्त का खेत जमाया, कबिरा का बैल चराया।। सबरी का जूंठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया। सदना औ सेना नाईको तुम कीन्हा अपनाई।। करमा की खिचड़ी खाई तुम गणिका पार लगाई। मीरा प्रभु तुमरे रंग राती या जानत सब दुनियाई।।