29. मीरा के प्रभु गिरधर नागर …………………….
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।। ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतन से, बार-बार डिग जाय।। ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूं चढ्यो न जाय। पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।। कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार। हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।