17. दूसरो न कोई …………………….
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।। जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।। छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई। संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।। चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई। मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।। अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई।। दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।। भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।