मीरा भजनमाला

15. चितवौ जी मोरी ओर …………………….

तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर। हम चितवत तुम चितवत नाहीं मन के बड़े कठोर। मेरे आसा चितनि तुम्हरी और न दूजी ठौर। तुमसे हमकूं एक हो जी हम-सी लाख करोर।। कब की ठाड़ी अरज करत हूं अरज करत भइ भोर। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी देस्यूं प्राण अकोर।।