6. राग सूहा
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स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान। स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।। सब में महिमा थांरी देखी कुदरत के करबान। बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।। दो मुट्ठी तंदुल कि चाबी दीन्ह्यों द्रव्य महान। भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।। अर्जुन कुलका लोग निहार््या छुट गया तीरकमान। ना कोई मारे ना कोई मरतो, तेरो यो अग्यान। चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारो ग्यान।। मेरे पर प्रभु किरपा कीजो, बांदी अपणी जान। मीरां के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।
6।। शब्दार्थ /अर्थ :- थांरी =तुम्हारी। करबान = चमत्कार। दालद =दरिद्रता। बालेकी =बचपन की। तंदुल =चावल। कुलका =अपने ही कुटुम्ब का। निहार््या = देखा। गीतारो =गीता का। बांदी = दासी। : बिरह : ————