48. राग अलैया
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तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे नागर नंदकुमार। मुरली तेरी मन हर््यौ, बिसर््यौ घर ब्यौहार।। जबतैं श्रवननि धुनि परी, घर अंगणा न सुहाय। पारधि ज्यूं चूकै नहीं, म्रिगी बेधि दई आय।। पानी पीर न जानई ज्यों, मीन तड़फ मरि जाय। रसिक मधुपके मरमको नहीं, समुझत कमल सुभाय।। दीपकको जो दया नहिं, उड़ि-उड़ि मरत पतंग। मीरा प्रभु गिरधर मिले, जैसे पाणी मिलि गयौ रंग।।9।।
शब्दार्थ /अर्थ :- बिसर््यो =भूल गया। पारधि =शिकारी। म्रिगी =हिरणी। बेधी दइ = बाण बेध दिया। पीर =पीड़ा