47. राग झंझोटी
…………………….
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।। जाके सिर मोरमुगट मेरो पति सोई। तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।। छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।। संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।। चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई। मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।। अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई। अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई।। दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।। भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई। दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।8।।
शब्दार्थ /अर्थ :- कानि =मर्यादा, लोकलाज। अंसुवन जल = अश्रुरूपी जल से। आणद =आनन्दमय। फल =परिणाम। राजी =खुश। रोई =दुखी हुई।