43. रागपीलू
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पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे।। मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गइ दासी रे। लोग कहैं मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।। विषका प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हांसी रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे।।4।।
शब्दार्थ /अर्थ :- आपहि =स्वयं ही। न्यात =सगे संबंधी। कुलनासी = कुल में दाग लगाने वाली। हांसी =प्रसन्न। सहज =आसानी से।