40. राग पटमंजरी
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मैं तो सांवरे के रंग राची। साजि सिंगार बांधि पग घूंघरू, लोक-लाज तजि नाची।। गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत रूप भइ सांची। गाय गाय हरि के गुण निसदिन,कालव्यालसूं बांची।। उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची। मीरा श्रीगिरधरन लालसूं, भगति रसीली जांची।।1।।
शब्दार्थ /अर्थ :- राची =रंग गई। उण =उस प्रियतम। खारो =कड़वा। रसीली =आनन्दमयी