34. राग बरसाती
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बंसीवारा आज्यो म्हारे देस, थारी सांवरी सूरत व्हालो बेस।। आऊं आऊं कर गया सांवरा, कर गया कौल अनेक। गिणता गिणता घस गई म्हारी आंगलियां की रेख।। मैं बैरागिण आदिकी जी, थांरे म्हारे कदको सनेस। बिन पाणी बिन साबुण सांवरा, होय गई धोय सफेद।। जोगण होय जंगल सब हेरूं, तेरा नाम न पाया भेष। तेरी सूरत के कारणें, म्हें धर लिया भगवां भेष।। मोर मुगट पीतांबर सोहै, घूंघरवाला केस। मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां, दूनो बढ़ै सनेस।।34।।
शब्दार्थ /अर्थ :-आज्यो =आना। म्हारे =मेरे। थारी =तुम्हारी। व्हालो =प्यारा। कौल =सौगन्ध। घस गई =घिस गई। आंगलियां =अंगुलियां। हेरूं =देखती फिरती हूं। म्हे = मैंने। सनेस = स्नेह, प्रेम।