32. राग कोसी
…………………….
म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो।। पल पल ऊभी पंथ निहारूं, दरसण म्हाने दीजो। मैं तो हूं बहु औगुणवाली, औगण सब हर लीजो।। मैं तो दासी थारे चरण कंवलकी, मिल बिछड़न मत कीजो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणां चित दीजो।।32।।
शब्दार्थ /अर्थ :- ऊभी =खड़ी। म्हाने = मुझे। औगण =अवगुण, दोष। कंवल = कमल।