मीराबाई के सुबोध पद

25. राग भीमपलासी

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गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा।। चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा। निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा।। व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा। मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा।।25।।

शब्दार्थ /अर्थ :- नैणा नेरा = आंखों के निकट। चाव = चाह। घणेरो =बहुत अधिक। सवेरा = जल्दी ही।

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