24. राग पीलू
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राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।। तड़फत तड़फत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री। निसदिन पंथ निहारूं पिव को, पलक न पल भरि लागी री।। पीव पीव मैं रटूं रात दिन, दूजी सुध बुध भागी री। बिरह भुजंग मेरो डस्यो है कलेजो, लहर हलाहल जागी री।। मेरी आरति मैटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री। मीरा व्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।।24।।
शब्दार्थ /अर्थ :- मिलण =मिलना। आरति =अत्यन्त पीड़ा। जागी =पैदा हुई। पलक न पलभरि = एक पल के लिए भी नींद नहीं आयी। भुजंग = सांप। लहर =लहरें।उकलाणी =व्याकुल हो गई। उमंग =चाह।