17. राग दरबारी कान्हरा
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पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस।। ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस। तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस।। अवधि बदीती अजहूं न आए, पंडर हो गया केस। मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तज दियो नगर नरेस।।17।।
शब्दार्थ /अर्थ :- सूनो = सूना। छै =है। म्हारो देस = मेरा देश अर्थात् जीवन। पेस -समर्पण। बदीती =बीत गई। पंडर = सफेद। नगर नरेस = अपने राजा का राज्य