13. राग धानी
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सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी।। थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी। लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी।। मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी।।13।।
शब्दार्थ /अर्थ :- निभाज्यो =निभा लेना। थे छौ =तुम हो। औगण =अवगुण, दोष, भूलें। जाज्यो = जानना, मन में लाना। पतीजै =विश्वासकरना। मुखडारा =मुख का। रमता आज्यो =विहार करते हुए आना।