मीराबाई के सुबोध पद

11. राग बिहाग

…………………….

माई म्हारी हरिजी न बूझी बात। पिंड मांसूं प्राण पापी निकस क्यूं नहीं जात।। पट न खोल्या मुखां न बोल्या, सांझ भई परभात। अबोलणा जु बीतण लागो, तो काहे की कुशलात।। सावण आवण होय रह्यो रे, नहीं आवण की बात। रैण अंधेरी बीज चमंकै, तारा गिणत निसि जात।। सुपन में हरि दरस दीन्हों, मैं न जान्यूं हरि जात। नैण म्हारा उघण आया, रही मन पछतात।। लेइ कटारी कंठ चीरूं, करूंगी अपघात। मीरा व्याकुल बिरहणी रे, काल ज्यूं बिललात।।11।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बूझी बात = बात न पूछी, ध्यान न दिया। पिंड मांसूं = शरीर में से। मुखां न बोल्या = मुंह से बात तक नहीं की। अबोलणा =बिना बोले,चुप साधे सावण =सावन का महीना। बीज =बिजली। हरिजात =हरि आकर चले गये। ऊघण आया =ऊंघने लगा, झपकी आ गयी। बिललात =व्याकुल होना,चिल्लाना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Select Dropdown