प्रयाणगीत

प्रयाणगीत
जयशंकर प्रसाद

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती –
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती –
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं – बढ़े चलो बढ़े चलो।

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में – सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो बढ़े चलो।

साभार : http://hi.literature.wikia.com/

2 thoughts on “प्रयाणगीत”

  1. Above poem is taken from Prasad’s great drama-Chandragupta. it is one of the finest poems in Hindi.this also dipicts the literary finnese of Shri Prasad.Thanks for your under-lying these beautiful lines.

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