उध्दव जी के कवित्त

श्री उद्धव के मथुरा से ब्रज जाते समय के मार्ग के कवित्त …………………………………….

23 आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह अकथ कथानि की ब्यथा सौं अकुलात हैं । कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकैं पाय पुनि कछु ध्याइ उर धाइ उरझात हैं ।। रससि उसाँसनि सौं बहि बहि आँसनि सौं भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं । सीरे तपे विबिध सँदेसनि बातनि की घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ।।

24 लै कै उपदेस-औ-सँदेस-पन ऊधौ चले शुजस-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं । कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ।। ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं डार मैं तमालनि की कछु बिरमानी अरु कछू अरुझानी है करीरनि के झार मैं ।।

25 हरैं-हरैं ज्ञानके गुमान घटि जानि लगे जोग के विधान ध्यान हूँ तैं टरिबैं लगे । नैननि मैं नीर रोम सकल शरीर छयौ प्रेम-अद्भुत-सुख सूझि परिबै लगे ।। गोकुल के गाँव की गली मैं पग पारत हीं भूमि कैं प्रभाव भाव औरे भरिबै लगे । ज्ञान-मारतंड के सुखाए मनु मानस कौं

सरस सुहाये घनस्याम करिबै लगे ।।

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