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राग भैरव
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जै गोबिंद माधव मुकुंद हरि ।
कृपा-सिंधु कल्यान कंस -अरि ।
प्रनतपाल केसव कमलापति ।
कृष्न कमल-लोचन अगतिनि गति ॥
रामचन्द्र राजीव-नैन बर ।
सरन साधु श्रीपति सारँगधर ।
बनमाली बामन बीठल बल ।
बासुदेव बासी ब्रज-भूतल ॥
खर-दूषन-त्रिसिरासुर-खंडन ।
चरन-चिन्ह दंडक-भुव-मंडन ।
बकी-दवन बक-बदन-बिदारन ।
बरुन-बिषाद नंद-निस्तारन ॥
रिषि-मष-त्रान ताड़का-तारक ।
बन बसि तात-बचन-प्रतिपालक ।
काली-दवन केसि-कर-पातन ।
अघ-अरिष्ट-धेनुक-अनुघातक ॥
रघुपति प्रबल पिनाक बिभंजन ।
जग-हित जनक-सुता-मन रंजन ।
गोकुल-पति गिरिधर गुन-सागर ।
गोपी-रवन रास-रति-नागर ॥
करुनामय कपि-कुल-हितकारी ।
बालि-बिरोधि कपट-मृग-हारी ।
गुप्त गोप-कन्या-ब्रत-पूरन ।
द्विज-नारी दरसन दुख चूरन ॥
रावन-कुंभकरन-सिर-छेदन ।
तरुबर सात एक सर भेदन ।
संखचूड़-चानूर-सँहारन ।
सक्र कहै मम रच्छा-कारन ॥
उत्तर-क्रिया गीध की करी ।
दरसन दै सबरी उद्धरी।
जे पद सदा संभु-हितकारी ।
जे पद परसि सुरसरी गारी ॥
जे पद रमा हृदय नहिं टारैं ।
जे पद तिहूँ भुवन प्रतिपारैं ।
जे पद अहि फन-फन प्रति धारी ।
जे पद बृंदा-बिपिन-बिहारी ॥
जे पद सकटासुर-संहारी ।
जे पद पांडव-गृह पग धारी ।
जे पद रज गौतम-तिय-तारी ।
जे पद भक्तनि के सुखकारी ॥
सूरदास सुर जाँचत ते पद ।
करहु कृपा अपने जन पर सद ॥
भावार्थ / अर्थ :– गोविन्द! माधव! हरि! कृपासागर! कल्याणमय! कंसके शत्रु! आपकी जय हो ! केशव ! लक्ष्मीपति ! नाथ! आप शरणागतका पालन करनेवाले हैं । कमललोचन श्रीकृष्ण ! जिनका कोई सहारा नहीं है, उनके आप ही सहारे हैं । (आप ही) श्रेष्ठ पद्मालोचन श्रीरामचन्द्र हैं, साधु पुरुषोंके आश्रय शार्ङ्गधनुषधारी लक्षमीकान्त हैं । (आप ही) वनमाली, वामन, विट्ठल, बलराम और वासुदेव हैं, जो व्रजभूमि में निवास कर रहे हैं । (आपही) खरदूषण तथा त्रिशिरा आदि राक्षसोंके विनाशक तथा अपने चरण-चिह्नोंसे दण्डक वन की भूमि को सुशोभित करनेवाले हैं । (आप) पूतनाका शासन करनेवाले, बकासुरका मुख फाड़ देनेवाले तथा वरुणके क्लेशसे (वरुणके दूतद्वारा पकड़कर ले जाये जानेपर) नन्दबाबाका छुटकारा करानेवाले हैं । (आप रामावतारमें ) महर्षि विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा करनेवाले, ताड़का राक्षसीका उद्धार करनेवाले तथा वनमें (चौदह वर्ष) रहकर पिताकी आज्ञाका पालन करनेवाले हैं । (आप ही) कालियनागका मर्दन करनेवाले, केशी राक्षसको मारनेवाले तथा अघासुर, अरिष्टासुर एवं धेनुकासुरका वध करनेवाले हैं । (आपही) अत्यन्त सुदृढ़ शिव धनुष पिनाकको तोड़ने वाले, संसारके हितकारी एवं श्रीजानकीजीका मनोरञ्जन करनेवाले श्रीरघुनाथ हैं । (आप ही) गोकुलके स्वामी, गोवर्धनको धारण करनेवाले, गुणोंके सागर, रासक्रीड़ामें परम चतुर गोपिकारमण हैं । (आप)करूणामय कपिकुलके हितकारी, बालीके शत्रु तथा कपटसे मृग बने मारीचको मारनेवाले हैं (और आप ही अपनेको पतिरूपमें प्राप्त करनेके उद्देश्यसे किये गये) गोप कुमारियोंके गुप्त व्रतको पूर्ण करनेवाले तथा ब्राह्मणपत्नियोंको दर्शन देकर उनके दुःखको नष्ट करनेवाले हैं । (आप ही) रावण तथा कुम्भकर्णका मस्तक काटनेवाले तथा एक ही बाणसे सात ताल-वृक्षोंको भेदन करनेवाले हैं। (आप ही) शंखचूड़ तथा चाणूरका संहार करनेवाले हैं तथा आपको ही इंद्र अपनी रक्षा करनेवाला कहते हैं । (आपने रामावतार में) गीधराज (जटायु) की अन्त्येष्टि क्रिया की तथा दर्शन देकर शबरी का उद्धार किया । (आपके) जो चरण शंकरजीके सदा हितकारी (ध्येय) हैं, जिन चरणों का स्पर्श करके गंगाजी प्रकट हुई जिन चरणोंको लक्ष्मीजी (कभी) हृदयसे हटाती (ही) नहीं, जो चरण तीनों लोकोंका प्रतिपालन करते हैं, जिन चरणोंको आपने कालियनागके एक-एक फण पर रखा, जो चरण वृन्दावनमें क्रीड़ा करते घूमे, जिन चरणोंसे (छकड़ा उलटकर) आपने शकटासुरका संहार किया, जो चरण पाण्डवोंके घर पधारे, जिन चरणोंकी धूलि गौतम ऋषिकी पत्नी अहल्याका उद्धार करनेवाली है, जो चरण सदा ही भक्तोंका मंगल करनेवाले हैं, हे देव ! सूरदास उन्हीं चरणोंमें याचना करता है कि आप अपने (इस) सेवकपर सदा कृपा करते रहें ।
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