राग सारंग
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बाबा मोकौं दुहन सिखायौ ।
तेरैं मन परतीति न आवै, दुहत अँगुरियनि भाव बतायौ ॥
अँगुरी भाव देखि जननी तब हँसि कै स्यामहि कंठ लगायौ ।
आठ बरष के कुँवर कन्हैया, इतनी बुद्धि कहाँ तैं पायौ ॥
माता लै दोहनि कर दीन्हीं, तब हरि हँसत दुहन कौं धायौ ।
सूर स्याम कौं दुहत देखि तब, जननी मन अति हर्ष बढ़ायौ ॥
(श्रीकृष्णचन्द्र कहते हैं -)’बाबाने मुझे दुहना सिखलाया है । तेरे मनमें विश्वास नहीं होता ?’ (यह कहकर ) अँगुलियों से दुहनेका भाव बतलाया, तब अँगुलियोंका भाव देखकर मैयाने हँसकर श्यामसुन्दरको गले लगा लिया । (बोलीं) ‘कुँवर कन्हाई! तुम आठ ही वर्षके तो हो, इतनी सब समझदारी कहाँसे पा गये ?’ माताने लाकर दोहनी हाथमें दे दी तब श्याम हँसते हुए दुहने को दौड़ गये ! सूरदासजी कहते हैं उस समय श्यामसुन्दरको गाय दुहते देखकर माताके चित्तमें अत्यन्त आनन्द हुआ ।