राग धनाश्री
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दै री मैया दोहनी, दुहिहौं मैं गैया ।
माखन खाएँ बल भयौ, करौं नंद-दुहैया ॥
कजरी धौरी सेंदुरी, धूमरि मेरी गैया ।
दुहि ल्याऊँ मैं तुरतहीं, तू करि दै घैया ॥
ग्वालिनि की सरि दुहत हौं, बूझहिं बल भैया ।
सूर निरखि जननी हँसी, तव लेति बलैया ॥
भावार्थ / अर्थ :– (श्याम बोले-) ‘मैया री ! मुझे दोहनी दे, मैं गाय दुहूँगा । मक्खन खाने से मैं बलवान् हो गया हूँ ।’ यह बात बाबा नन्दकी शपथ करके कहता हूँ । ‘कजरी, धौरी, लाल, धूमरी आदि मेरी जो गायें हैं, मैं उन्हें तुरंत दुह लाता हूँ, तू धैया (ताजे दूधके ऊपरसे निकाला हुआ मक्खन) तैयार कर दे । तू दाऊ दादासे पूछ ले मैं गोपियोंके समान ही दुह लेता हूँ ।’ सूरदासजी कहते हैं – (अपने लालको) देखकर माता हँस पड़ी और तब बलैया लेने लगीं ।