राग धनाश्री
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हेरी देत चले सब बालक ।
आनँद सहित जात हरि खेलत, संग मिले पशु-पालक ॥
कोउ गावत, कोऊ बेनु बजावत, कोऊ नाचत, कोउ धावत ।
किलकत कान्ह देखि यह कौतुक, हरषि सखा उर लावत ॥
भली करी तुम मोकौं ल्याए, मैया हरषि पठाए ।
गोधन-बृँद लिये ब्रज-बालक, जमुना-तट पहुँचाए ॥
चरति धेनु अपनैं-अपनैं रँग, अतिहिं सघन बन चारौ ।
सूर संग मिलि गाइ चरावत, जसुमति कौ सुत बारौ ॥
भावार्थ / अर्थ :– सब बालक ‘हेरी’ देते (गायोंको हाँकते-पुकारते) चले जा रहे हैं । श्याम आनन्दके साथ चरवाहोंके साथ मिलकर खेलते हुए जा रहे हैं । कोई गाता है,कोई वेणु बजाता है, कोई नाचता है और कोई दौड़ता है । कन्हाई यह क्रीड़ा देखकर किलकारियाँ लेते हैं और आनन्दित होकर सखाओंको हृदयसे लगा लेते हैं ।( कहते हैं -) तुम लोगोंने अच्छा किया जो मुझे साथ ले आये, मैयाने भी प्रसन्नतापूर्वक भेजा है ।’ व्रजके बालक गायोंका झुण्ड साथ लिये यमुना किनारे पहुँच गये । वन खूब सघन है, वहाँ चरनेयोग्य तृण बहुत है, गायें अपनी-अपनी मौजसे चर रही हैं । सूरदासजी कहते हैं ये बालक यशोदानन्दन (बालकोंके) साथ होकर गायें चरा रहे हैं ।