210. राग सारंग – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग सारंग

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मैं अपनी सब गाइ चरैहौं ।

प्रात होत बल कैं सँग जैहौं, तेरे कहें न रैहौं ॥

ग्वाल-बाल गाइन के भीतर, नैंकहु डर नहिं लागत ।

आजु न सोवौं नंद-दुहाई, रैनि रहौंगौ जागत ॥

और ग्वाल सब गाइ चरैहैं मैं घर बैठौ रेहौं ?

सूर स्याम तुम सोइ रहौ अब, प्रात जान मैं दैंहौं ॥

भावार्थ / अर्थ :– (श्यामसुन्दर मातासे कहते हैं-) ‘मैं अपनी सब गायें चराऊँगा । सबेरा होने पर दाऊ दादाके साथ जाऊँगा, तेरे कहनेसे (घर) नहीं रहूँगा । ग्वाल बालकों तथा गायोंके बीचमें रहने से मुझे तनिक भी भय नहीं लगता है । नन्दबाबा की शपथ ! आज (मैं) सोऊँगा नहीं, रातभर जागता रहूँगा । दूसरे गोप बालक तो गाय चरायेंगे और मैं घर बैठा रहूँ ?’ सूरदासजी कहते हैं,(माता बोलीं-) श्याम, अब तुम सो रहो, सबेरे मैं तुम्हें जाने दूँगी ।’