राग बिलावल
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खेलत कान्ह चले ग्वालनि सँग ।
जसुमति यहै कहत घर आई, हरि कीन्हे कैसे रँग ॥
प्रातहि तैं लागे याही ढँग, अपनी टेक कर््यौ है ।
देखौ जाइ आजु बन कौ सुख, कहा परोसि धर््यौ है ॥
माखन -रोटी अरु सीतल जल, जसुमति दियौ पठाइ ।
सूर नंद हँसि कहत महरि सौं , आवत कान्ह चराइ ॥
भावार्थ / अर्थ :– कन्हाई खेलते हुए गोप-बालकोंके साथ चल पड़े । यशोदाजी यह कहते हुए घर लौट आयीं कि ‘श्यामने आज कैसा ढंग पकड़ा । सबेरे से इसीधुनमें लगा था और (अन्तमें) अपनी हठ पूरी करके रहा है । आज जाकर वन का सुख भी देख लो कि वहाँ क्या परोसकर रखा है ।’ मक्खन, रोटी और शीतल जल यशोदाजीने (वनमें) भेज दिया । सूरदासजी कहते हैं कि नन्दजी हँसके व्रजरानीसे कह रहे हैं –‘कन्हाईको गायें चराने आता है ।’