125. राग बिलावल – श्रीकृष्ण बाल-माधुरी

राग बिलावल

[175]

……………

देखौ री! जसुमति बौरानी ।

घर घर हाथ दिखावति डोलति,गोद लिए गोपाल बिनानी ॥

जानत नाहिं जगतगुरु माधव, इहिं आए आपदा नसानी ।

जाकौ नाउँ सक्ति पुनि जाकी, ताकौं देत मंत्र पढ़ि पानी॥

अखिल ब्रह्मंड उदर गत जाकैं, जाकी जोति जल-थलहिं समानी ।

सूर सकल साँची मोहि लागति, जो कछु कही गर्ग मुख बानी ॥

सूरदासजी कहते हैं – (गोपियाँ कहती हैं -) देखो तो सखी ! यशोदाजी पगली हो गयी हैं । ‘ये अनजान बनी गोपालको गोदमें लिये घर-घर उनके सिरपर (आशीर्वादका) हाथ रखवाती घूम रही हैं । जानती नहीं कि ये तो साक्षात् जगत् पूज्य लक्ष्मीकान्त हैं । इनके (गोकुलमें) आनेसे ही (हमारी) सब आपत्तियाँ दूर हो गयी हैं, जिसके नाम ही मन्त्र हैं और (उन मंत्रोंमें) जिसकी शक्ति है, उसीके ऊपर मन्त्र पढ़कर जलके छींटे देती हैं । समस्त ब्रह्माण्ड जिसके उदरमें हैं जल-स्थलमें सर्वत्र जिसकी ज्योति व्याप्त है, वही सब मुझे तो सच्चा लगता है ।